स्वर्णरेखा महोत्सव के 20 वर्ष पूर्ण होने पर मिलानी हॉल में गोष्ठी आयोजित

नदियों का निर्मल और अविरल बहना जरुरी – सरयू राय

– पूजन सामग्रियों को सीधे नदी में न फेंके – चौबे

– खरकई का दूषित पानी स्वर्णरेखा में मिलता है – केडिया

– पहले लोग सुराही, अब प्यूरीफायर जल लेकर कर रहे यात्रा – गोस्वामी

– नदी किनारे नहाते हैं, मगर नदी की पवित्रता का ध्यान नहीं रखते – दिनेश

 

जमशेदपुर : पश्चिम के विधायक सरयू राय ने कहा कि नदियों का पानी निर्मल और अविरल बहना जरूरी है। हर माह कम से कम एक दिन हमें नदियों के किनारे काम करने की जरूरत है। क्योंकि आज जो पर्यावरण की स्थिति हो गई है, वह बेहद दुखद है। स्वर्णरेखा क्षेत्र विकास ट्रस्ट और युगांतर भारती के संयुक्त तत्वावधान में मंगलवार बिस्टुपुर मिलानी हॉल में स्वर्णरेखा महोत्सव के 20 वर्ष पूर्ण होने के अवसर पर आयोजित संगोष्ठी में सरयू राय ने कहा कि स्वर्णरेखा महोत्सव के लिए मकर संक्रांति का दिन इसलिए चुना गया है, ताकि जनसहभागिता हो और लोग इस अभियान से जुड़ें। 20 साल पहले जब हम लोग पानी का नमूना लेते थे तो लोग हंसते थे कि क्या कर रहे हैं। आज कई एनजीओ वही काम कर रही हैं। इस दौरान उन्होंने कहा कि वे मंगलवार की सुबह बोधनवाला और पांडेय घाट पर गये। साथ ही सोनारी दोमुहानी घाट पर भी गये थे। लेकिन वहां गंदगी उतनी नहीं, जितनी पांडेय घाट पर है। इसपर उन्होंने गंभीर चिंता जताते हुए कहा कि सारी गंदगी सीधे नदी किनारे फेंकी जा रही है और जो नदी में ही चली जाती है। वहीं घर का कचरा इसमें सबसे ज्यादा है। उन्होंने कहा कि हमने नदियों को अपने घर का कचरा डंप करने का अड्डा बना लिया है। यह ठीक नहीं है। जो कचरा हम नदियों में डंप करेंगे, वही पानी में जाएगा और कहीं न कहीं से वही पानी हम लोग पीते भी हैं। आखिर मशीनें पानी को कितना फिल्टर कर पाएंगी। उन्होंने कहा कि शहरीकरण और विकास की अंधी दौड़ में सबसे ज्यादा आघात नदियों पर पड़ा है। दरअसल हम लोग जिस नदी का पानी पीते हैं, आज की तारीख में उसे ही गंदा भी कर भी रहे हैं। इसका परिणाम आखिर क्या होगा। खरकई नदी का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि कहने को तो यह नदी है। लेकिन बरसात बीतने के बाद यह नाला बन जाती है। इस नदी में इतना कचरा फेंक दिया जाता है कि नदी का प्रवाह टूटने लगता है। इसलिए वह नाला बन जाती है। वहीं रवींद्रनाथ चौबे ने कहा कि सरयू राय ने ठीक ही कहा था कि सतनाला से गहरा जहां का पानी मिलेगा, वही पानी शुद्ध होगा। सरयू राय मुख्य सचिव से पत्राचार कर रहे हैं और हमें उम्मीद है कि परिणाम अच्छा निकलेगा। उन्होंने कहा कि हम पूजा-पाठ करते हैं, करें। लेकिन जो पूजन सामग्री है, उसे नदी में सीधे न फेकें। नदी के किनारे झाड़ियां होती हैं। उन झाड़ियों में फेंकें तो ठीक रहेगा। उनका तर्क यह था कि पूजन सामग्री को अगर हम लोग सीधे नदी में फेंक देंगे तो कचरा लगातार जमा होता चला जाएगा और जो नदी के वेग को तो रोकेगा ही, पानी को भी बुरी तरह प्रदूषित कर देगा। उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि गुजरात में नदियों में सीधे पूजन सामग्री नहीं फेंकी जाती। वहां एक सिस्टम बन गया है कि आप जैसे ही नदियों में पूजन सामग्री या कोई भी चीज फेंकेंगे, आप कैमरे में कैद हो जाएंगे। सरकार को इस दिशा में झारखंड में भी काम करना चाहिए। इसी तरह डॉ मुरलीधर केडिया ने कहा कि बागबेड़ा, मानगो और जुगसलाई में जो भी कचरा सेप्टिक टैंक में डाला जाता है, वह सीधे नदी में चला जाता है। इससे जबरदस्त नुकसान होता है। उनका कहना था कि जुगसलाई का कचरा नदी के किनारे डंप होता है और खरकई का दूषित पानी अंततः स्वर्णरेखा नदी में ही जाकर मिल जाता है। उन्होंने सरकार से अपेक्षा की है कि शहर में अलग-अलग स्थानों पर वॉटर ट्रीटमेंट प्लांट बिठाया जाये। जबकि वरिष्ठ भाजपा नेता डॉ दिनेशानंद गोस्वामी ने कहा कि पहले के लोग जब सफर पर चलते थे, तब अपने साथ एक सुराही रखते थे। वे मानते थे कि घर का पानी साफ और शुद्ध है। साथ ही मिट्टी की सुराही का पानी उनके लिए बेहतर है। अब लोग फ्लास्क और न जाने क्या-क्या लेकर चलते हैं। लेकिन उन्हें शुद्ध पानी नहीं मिलता। घरों में शुद्ध हवा के लिए मशीनें लगाई जा रही हैं। पहले ये सब ताम-झाम नहीं था। आप कल्पना करें कि 20-25 साल के बाद देश-दुनिया की क्या स्थिति होने वाली है। हमें न तो शुद्ध हवा आज मिल रही है और न ही शुद्ध पानी। दो दशक बाद के दृश्य की कल्पना करके रोम-रोम सिहर उठता है। साइंस और पर्यावरणविद कहते हैं कि जिस नदी की तलहटी में ज्यादा बालू होगा, वहां का पानी ज्यादा साफ होगा। आप नजरें उठा कर देखें, किस नदी का बालू तस्करों ने गायब नहीं कर दिया। जब बालू है ही नहीं तो फिर पानी शुद्ध होगा कहां से? इसी तरह जाने-माने पर्यावरणविद डा दिनेश चंद्र मिश्र ने कहा कि जब उन्होंने नदियों का अध्ययन किया तो कई बातें सामने आईं। नदियों से परंपराएं जुड़ी हुई हैं। माता-पिता और गुरुजन पहले शिक्षा देते थे, ज्ञान की बातें सिखाया करते थे। अब ये परंपराएं समाप्त हो गईं। दरअसल हमें समझना होगा कि नदियां पूरे विश्व की माता हैं। नई पीढ़ी को इसमें कोई रुचि नहीं है। उन्होंने एक श्लोक गंगे चै यमुने च गोदावरी सरस्वती, नर्मदे सिन्धु कावेरि जलेस्मिन् सन्निधिं कुरु का जिक्र करते हुए बताया कि इस श्लोक में जल की व्यापक महत्ता है। इसमें सात नदियों के नाम हैं। सरस्वती केंद्र में आती हैं। सरस्वती में पानी है ही नहीं। हम लोग नदी को प्रणाम कर समस्त कार्य करते हैं। सरस्वती लुप्त हो गईं। प्रकृति ने हर घर के आगे सरस्वती प्रदान की। इसे कुआं कहते हैं। हम लोग नदी पर ध्यान-स्नान कर रहे हैं। लेकिन उसकी पवित्रता पर ध्यान ही नहीं है। आज तो कोई नदी ऐसी बची ही नहीं, जिसके जल से हम लोग सीधे आचमन कर सकें। इसके पूर्व स्वागत भाषण स्वर्णरेखा क्षेत्र विकास ट्रस्ट के ट्रस्टी अशोक गोयल ने किया। जबकि मंच संचालन सुबोध श्रीवास्तव ने किया। आभार प्रदर्शन स्वर्णरेखा क्षेत्र विकास ट्रस्ट के ट्रस्टी आशुतोष राय ने किया।

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